शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

माइकेल फैराडे, अंग्रेेेज भौतिक विज्ञानी एवं रसायनज्ञ थे।चुम्बकीय प्रभाव का आविष्कार किया। उसने विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण का अध्ययन करके उसको नियमवद्ध किया। इससे विद्युत मोटर का निर्माण हुआ। बाद में  Maxwell के विद्युतचुम्बकत्व के चार समीकरणों में फैराडे का यह नियम भी सम्मिलित हुआ। फैराडे ने विद्युत्-रसायन पर भी बहुत काम किया और इससे सम्बन्धित अपने दो नियम दिये। उन्होंने रुडोल्फ डिजल सहित डिजल-चलित बिजलीउत्पादक का आविष्कार किया था।

जीवनीसंपादित करें

माइकल फैराडे का जन्म 22 सितंबर 1791 ई. को हुआ। इनके पिता बहुत गरीब थे और लुहारी का कार्य करते थे। इन्होंने अपना जीवन लंदन में जिल्दसाज की नौकरी से प्रारंभ किया। समय मिलने पर रसायन एव विद्युत् भौतिकी पर पुस्तकें पढ़ते रहते थे। सन् 1813 ई. में प्रसिद्ध रसायनज्ञ, सर हंफ्री डेबी, के व्याख्यान सुनने का इन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ। इन व्याख्यानों पर फैराडे ने टिप्पणियाँ लिखीं और डेबी के पास भेजीं। सर हंफ्री डेबी इन टिप्पणियों से बड़े प्रभावित हुए और अपनी अनुसंधानशाला में इन्हें अपना सहयोगी बना लिया। फैराडे ने लगन के साथ कार्य किया और निरंतर प्रगति कर सन् 1833 में रॉयल इंस्टिट्यूट में रसायन के प्राध्यापक हो गए।
अपने जीवनकाल में फैराडे ने अनेक खोजें कीं। सन् 1831 में विद्युच्चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत की महत्वपूर्ण खोज की। चुंबकीय क्षेत्र में एक चालक को घुमाकर विद्युत्-वाहक-बल उत्पन्न किया। इस सिद्धांत पर भविष्य में जनित्र (generator) बना तथा आधुनिक विद्युत् इंजीनियरी की नींव पड़ी। इन्होंने विद्युद्विश्लेषण पर महत्वपूर्ण कार्य किए तथा विद्युद्विश्लेषण के नियमों की स्थापना की, जो फैराडे के नियम कहलाते हैं। विद्युद्विश्लेषण में जिन तकनीकी शब्दों का उपयोग किया जाता है, उनका नामकरण भी फैराडे ने ही किया। क्लोरीन गैस का द्रवीकरण करने में भी ये सफल हुए। परावैद्युतांक, प्राणिविद्युत्, चुंबकीय क्षेत्र में रेखा ध्रुवित प्रकाश का घुमाव, आदि विषयों में भी फैराडे ने योगदान किया। आपने अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें सबसे उपयोगी पुस्तक "विद्युत् में प्रायोगिक गवेषणाएँ" (Experimental Researches in Electricity) है।
फैराडे जीवन भर अपने कार्य में रत रहे। ये इतने नम्र थे कि इन्होंने कोई पदवी या उपाधि स्वीकार न की। रायल सोसायटी के अध्यक्ष पद को भी अस्वीकृत कर दिया। धुन एवं लगन से कार्य कर, महान वैज्ञानिक सफलता प्राप्त करने का इससे अच्छा उदाहरण वैज्ञानिक इतिहास में न मिलेगा। हर फ्री डेवी भी फैराडे को अपनी सबसे बड़ी खोज मानते थे।
माइकल फैराडे की मृत्यु 25 अगस्त 1867 ई. को हुई।

फैराडे का विद्युत अपघटन का नियम

सन् १८३४ में फैराडे ने विद्युत्-रसायन से सम्बन्धित अपने कुछ संख्यात्मक प्रेक्षणों को प्रकाशित किया। इन्हें फैराडे के

विद्युत अपघटन

 के नियम (Faraday's laws of electrolysis) कहते हैं। इसके अन्तर्गत दो नियम हैं। पाठ्यपुस्तकों और वैज्ञानिक साहित्य में में इन नियमों को अलग-अलग तरीके से प्रस्तुत किया जाता है लेकिन वहुधा प्रचलित रूप कुछ इस प्रकार है।
फैराडे का विद्युत अपघटन का प्रथम नियम
विद्युत अपघटन में विद्युताग्रों (एलेक्ट्रोड्स) पर जमा हुए पदार्थ की मात्रा धारा की मात्रा समानुपाती होती है। 'धारा की मात्रा' का अर्थ आवेश से है न कि विद्युत धारा से।
 


संपादित करेंफैराडे

 के नियमों को संक्षेप में इस प्रकार लिख सकते हैं -
{\displaystyle m\ =\ ({Q \over F})({M \over z})}
जहाँ
m किसी विद्युताग्र पर जमा हुए पदार्थ का दर्व्यमान है
Q विलयन से होकर प्रवाहित कुल आवेश की मात्रा है,
F = 96 485 C mol-1 को फैराडे नियतांक कहते हैं।
M पदार्थ का मोलर द्रव्यमान है,
zआयनों की संयोजकता संख्या  है जो कि दर्शाती है कि प्रति ऑयन कितने इलेक्ट्रॉन (ट्रान्सफर) होते हैं।
ध्यात्व्य है कि M / z जमा हुए पदार्थ का quivalent weight) है।
फैराडे के प्रथम नियम् के लिये, MF, तथा z नियत हैं ; अत: Q जितना अधिक होगा, उतना ही अधिक m भी होगा।
फैराडे के द्वितीय नियम के लिये, QF, तथा z नियतांक हैं; अत: M / z (तुल्यांकी भार) जितना ही अधिक होगा, m भी उतना ही अधिक होगा।
यदि एक साधारण स्थिति की बात की जाय जिसमें विद्युत धारा नियत रहती हो, तो {\displaystyle Q=It} और
{\displaystyle m\ =\ ({It \over F})({M \over z})}
{\displaystyle n\ =\ ({It \over F})({1 \over z})}
जहाँ
n मोलों की संख्या है : n = m / M
t वह समयावधि है जितने समय तक विद्युत प्रवाहित होती है,
किन्तु यदि परिवर्ती (variable) धारा बह रही हो तो कुल आवेश Q का मान धारा I({\displaystyle \tau }) को समय के सापेक्ष समाकलन (integrated over time) के बराबर होगी {\displaystyle \tau }:
{\displaystyle Q=\int _{0}^{t}I(\tau )\ d\tau }

विद्युत अपघटन


डेनियल सेल से मेल खाता हा एक विद्युतरासायनिक सेलरसायन विज्ञान एवंनिर्माण मैन्युफैक्चरिंग) मे विद्युत अपघटन (electrolysis) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा किसी रासायनिक यौगिक  में विद्युत-धारा प्रवाहित करके उसके रसायनिक बन्धु को तोड़ा जाता है। उदाहरण के लिये जल में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर जल, हाईड्रोजन एवं आक्सीजन  में विघटित हो जाता है जिसे जल का विद्युत अपघटन कहते हैं। विद्युत अपघटन के बहुत से उपयोग हैं। अयस्को को प्रसंस्कारित करके उनमें निहित रासायनिक तत्व  को शुद्ध करना एवं उसे अलग करना इसका सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक एवं व्यावसायिक उपयोग है।

संक्षिप्त इतिहाससंपादित करें

  • 1800 - विलियम निकल्सनौर जोहान रिटर ने जल का विद्युत अपघटन करके हाइड्रोजन एवं आक्सीजन प्राप्त किया।
  • 1807 - हैंफ्रीडेवी ने विद्युतपघटन के उपयोग से  सोडियम,बैरियंम ,मैग्नीसियम खोज की।
  • 1886 - हेनरी म्वायसन (Henri Moissan) ने विद्युत अपघटन के उपयोग के द्वारा फलौरीन का अविष्कार किया।
  • 1886 - एलुमिनियम के निष्कर्षण (extraction) के लिये हाल-हेरोल्ट (Hall-Héroult) प्रक्रिया की खोज
  • 1890 - कास्टनर-केल्नर प्रक्रिया (Castner-Kellner process) द्वारा सोडियम हाइड्राक्साइड का निर्माण

परिचयसंपादित करें

जब किसी ऑयनिक पदार्थ (जो कि विलयन के रूप में हो या पिघला हा हो) से जब विद्युत धारा प्रवाहित करते हैं तो विद्युताग्रों (एलेक्ट्रोड्स) के उपर रासायनिक अभिक्रिया होती है और इससे नये पदार्थ बनते हैं।

विद्युत अपघटन के लिये आवश्यक अवयवसंपादित करें

  • विद्युत अपघट्य(electrolyte) - किसी द्रव में स्थित चलायमान ऑयन।
उपरोक्त अवयवों की भूमिका इस प्रकार है-
  • चलायमान आयन  विद्युतधारा के प्रवाह के लिये "वाहक" (कैरिअर) का काम करते हैं। यदि आयन चलायमान न हों (जैसे किसी ठोस में) तो विद्युत अपघ्टन सम्भव नहीं होगा।
  • बाहर से विद्युत धारा प्रवाहित करने से आयन बनने या "डिस्चार्ज" होने के लिये आवश्यक ऊर्जा  प्राप्त होती है।
  • दो विद्युताग्र - बाहरी विद्युत परिपथ एवं आयनिक विलयन को विद्युतीय दृष्टि से जोडने का काम करते हैं।
विद्युताग्र, विद्युत के चालक होने चाहिये। धातु, ग्रेफाइट और अर्धचालक के एलेक्ट्रोड बहुता प्रयोग में लाये जाते हैं। एलेक्ट्रोड के पदार्थ का चुनाव इन् बातों से प्रभावित होता है-
  • एलेक्ट्रोड और एलेक्ट्रोलाइट के बीच कोई क्रिया नहीं होनी चाहिये।
  • एलेक्ट्रोड के निर्माण का ख्र्च कम होना चाहिये।
  • पानी का विद्युत अपघटनसंपादित करें

    जल का विद्युत अपघटन करने के लिये  (डीसी) का कोई स्रोत आवश्यक होता है। पानी के विद्युत अपघटन से हाइड्रोजन और आक्सीजन प्राप्त होते हैं। पानी से हाइड्रोजन की प्राप्ति इसे महत्वपूर्ण बनाती है।
    2H2O(l) → 2H2(g) + O2(g); E0 = 1.229 V
    हाइड्रोजन बहुत उपयोगी है।

    फैराडे का विद्युतचुम्बकीय प्रेरण का नियम



    किसी बन्द परिपथ में उत्पन्न  बल (EMF) उस परिपथ से होकर प्रवाहित चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन की दर के बराबर होता है।
    विद्युतचुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त की खोज माइकल फैराडे ने सन् १८३१ में की।
    फैराडे ने इस नियम को गणितीय रूप में निम्नवत् प्रस्तुत किया -

    जहाँ
     विद्युतवाहक बल है (वोल्ट में)
    ΦB परिपथ से होकर गुजरने वाला चुम्बकी फ्लक्स है (वेबर / Weber / (Wb) में)
    संक्षेप में लेंज का नियम यही कहता है कि उत्पन्न विद्युतवाहक बल की दिशा ऐसी होती है जो उत्पन्न करने वाले कारण का विरोध कर सके। उपरोक्त सूत्र में ऋणचिन्ह इसी बात का द्योतक है।

     आदि की कार्यप्रणाली इसी सिद्धान्त पर आधारित है। इस नियम के अनुसार
  • कुण्डलीInductio coil) जो भौतिकी की कक्षाओं में प्रेरण के बारे में जानकारी देने के लिये  प्रयोग जाती थी।

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