अल्बर्ट आइंस्टीन
अल्बर्ट आइंस्टीन (जर्मन : Albert Einstein; १४ मार्च १८७९ - १८ अप्रैल १९५५) एक विश्वप्रसिद्ध सैद्धांतिक भौतिकविद् थे जो सापेक्षता के सिद्धांत और द्रव्यमान-ऊर्जा समीकरण E = mc2 के लिए जाने जाते है।
अन्य योगदानों में- सापेक्ष ब्रह्मांड, केशिकीय गति, क्रांतिक उपच्छाया, सांख्यिक मैकेनिक्स की समस्याऍ, अणुओं का ब्राउनियन गति, अणुओं की उत्परिवर्त्तन संभाव्यता, एक अणु वाले गैस का क्वांटम सिद्धांत, कम विकिरण घनत्व वाले प्रकाश के ऊष्मीय गुण, विकिरण के सिद्धांत, एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत और भौतिकी का ज्यामितीकरण शामिल है। आइंस्टीन ने पचास से अधिक शोध-पत्र और विज्ञान से अलग किताबें लिखीं। सर्वेक्षण के अनुसार वे सार्वकालिक महानतम वैज्ञानिक माने गए।
आइंस्टीन ने 300 से अधिक वैज्ञानिक शोध-पत्रों का प्रकाशन किया। 5 दिसंबर 2014 को विश्वविद्यालयों और अभिलेखागारो ने आइंस्टीन के 30,000 से अधिक अद्वितीय दस्तावेज एवं पत्र की प्रदर्शन की घोषणा की हैं। आइंस्टीन के बौद्धिक उपलब्धियों और अपूर्वता ने "आइंस्टीन" शब्द को "बुद्धिमान" का पर्याय बना दिया है।
जीवनी
बचपन और शिक्षा
अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म जर्मनी में वुटेमबर्ग के एक यहूदी परिवार में हुआ। उनके पिता एक इंजीनियर और सेल्समैन थे। उनकी माँ पौलीन आइंस्टीन थी। हालाँकि आइंस्टीन को शुरू-शुरू में बोलने में कठिनाई होती थी, लेकिन वे पढाई में अव्वल थे। उनकी मातृभाषा जर्मन थी और बाद में उन्होंने इतालवी और अंग्रेजी भी सीखी।
1880 में उनका परिवार म्यूनिख शहर चला गया, जहाँ उनके पिता और चाचा ने मिलकर "इलेक्ट्राटेक्निक फ्रैबिक जे आइंस्टीन एंड सी" (Elektrotechnische Fabrik J. Einstein & Cie) नाम की कम्पनी खोली, जोकि बिजली के उपकरण बनाती थी। और इसने म्यूनिख के Oktoberfest मेले में पहली बार रोशनी का प्रबन्ध भी किया था। उनका परिवार यहूदी धार्मिक परम्पराओं को नहीं मानता था, और इसी वजह से आइंस्टीन कैथोलिक विद्यालय में पढने जा सके। अपनी माँ के कहने पर उन्होंने सारन्गी बजाना सीखा। उन्हें ये पसन्द नहीं था और बाद मे इसे छोड़ भी दिया, लेकिन बाद मे उन्हे मोजार्ट के सारन्गी संगीत मे बहुत आनन्द आता था।
1894 में, उनके पिता की कंपनी को म्यूनिख शहर में विद्युत प्रकाश व्यवस्था के लिए आपूर्ति करने का अनुबंध नहीं मिल सका। जिसके कारण हुये नुकसान से उन्हें अपनी कंपनी बेचनी पड़ गई। व्यापार की तलाश में, आइंस्टीन परिवार इटली चले गए, जहाँ वे सबसे पहले मिलान और फिर कुछ महीने बाद पाविया शहर में बस गये। परिवार के पाविया जाने के बाद भी आइंस्टीन म्यूनिख में ही अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए रुके रहें। दिसंबर 1894 के अंत में, उन्होंने पाविया में अपने परिवार से मिलने इटली की यात्रा की। इटली में अपने समय के दौरान उन्होंने "एक चुंबकीय क्षेत्र में ईथर की अवस्था की जांच" शीर्षक के साथ एक लघु निबंध लिखा था।
वैज्ञानिक कार्यकाल
अपने पूरे जीवनकाल में, आइंस्टीन ने सैकड़ों किताबें और लेख प्रकाशित किये। उन्होंने 300 से अधिक वैज्ञानिक और 150 गैर-वैज्ञानिक शोध-पत्र प्रकाशित किये। 1965 के अपने व्याख्यान में , ओप्पेन्हेइमर ने उल्लेख किया कि आइंस्टीन के प्रारंभिक लेखन में कई त्रुटियों होती थी जिसके कारण उनके प्रकाशन में लगभग दस वर्षों की देरी हो चुकी थी: " एक आदमी जिसका त्रुटियों को ही सही करने में एक लंबा समय लगे, कितना महान होगा"।वे खुद के काम के अलावा दूसरे वैज्ञानिकों के साथ भी सहयोग करते थे, जिनमे बोस आइंस्टीन के आँकड़े, आइंस्टीन रेफ्रिजरेटर और अन्य कई आदि शामिल हैं।.
1905–अनुस मिराबिलिस पेपर्स
अनुस मिराबिलिस पेपर्स चार लेखों से संबंधित हैं जिसे आइंस्टीन ने 1905 को ऑनलन डेर फिजिक नाम की एक वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित किया था, जिनमे प्रकाशविद्युत प्रभाव (जिसने क्वांटम सिद्धांत को जन्म दिया) , ब्राउनियन गति, विशेष सापेक्षतावाद, और E = mc2 शामिल थे। इन चार लेखों ने आधुनिक भौतिकी की नींव के लिए काफी योगदान दिया है और अंतरिक्ष, समय तथा द्रव्य पर लोगो की सोच को बदला है। ये चार कागजात हैं:
ऊष्मागतिकी अस्थिरता और सांख्यिकीय भौतिकी
सन 1900 में ऑनालेन डेर फिजिक को प्रस्तुत, आइंस्टीन के पहला शोध-पत्र "केशिका आकर्षण" पर था। यह 1901 में " "केशिकत्व घटना से निष्कर्ष" शीर्षक के साथ प्रकाशित किया गया। 1902-1903 में प्रकाशित दो पत्रों (ऊष्मा गतिकी पर) में परमाणुवीय घटना की व्याख्या, सांख्यिकीय के माध्यम से करने का प्रयास किया। यही पत्र, 1905 के ब्राउनियन गति पर शोध-पत्र के लिए नींव बने, जिसमें पता चला कि अणुओ की उपस्थिति हेतु ब्राउनियन गति को ठोस सबूत की तरह उपयोग किया जा सकता है। 1903 और 1904 में उनका शोध मुख्य रूप से, प्रसार घटना पर परिमित परमाणु आकार का असर पर संबंधित रहे।
सापेक्षता का सिद्धांत
।जो कि हरमन मिन्कोव्स्की के अनुसार अंतरिक्ष से अंतरिक्ष-समय के बीच बारी-बारी से परिवर्तनहीनता के सामान्यीकरण के लिए जाना जाता है। अन्य सिद्धांत जो आइंस्टीन द्वारा बनाये गए और बाद में सही साबित हुए, में समानता के सिद्धांत और क्वांटम संख्या के समोष्ण सामान्यीकरण के सिद्धांत शामिल थे।
सापेक्षता के सिद्धांत और E=mc²
आइंस्टीन के "चलित निकायों के बिजली का गतिविज्ञान पर" शोध-पत्र 30 जून 1905 को पूर्ण हुआ और उसी वर्ष की 26 सितंबर को प्रकाशित हुआ। यह बिजली और चुंबकत्व के आइंस्टीन के सापेक्षता के विशेष सिद्धांत के रूप में जाना गया।
जिसका निष्कर्ष था कि, समय- अंतरिक्ष ढाँचे में गतिशील पदार्थ, धीमा और संकुचित (गति की दिशा में) नजर आता हैं, जब इसे पर्यवेक्षक के ढाँचे में मापा जाता है। इस शोध-पत्र में यह भी तर्क दिया कि लुमिनिफेरस ईथर(उस समय पर भौतिक विज्ञान में सबसे अग्रणी सिद्धान्त) का विचार ज़रूरत से ज़्यादा था।
द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता के अपने शोध-पत्र में, आइंस्टीन ने विशेष सापेक्षता समीकरणों से E=mc² को निर्मित किया।
क्वांकेटा
1905 के एक पत्र में, आइंस्टीन बताया की कि प्रकाश स्वतः ही स्थानीय कणों (क्वांटाम) के बने होते हैं। आइंस्टीन के प्रकाश क्वांटा परिकल्पना को मैक्स प्लैंक और नील्स बोर सहित लगभग सभी भौतिकविदों, ने अस्वीकार कर दिया। रॉबर्ट मिल्लिकन की प्रकास विद्युत प्रभाव पर विस्तृत प्रयोग, तथा कॉम्पटन बिखरने की माप के साथ, यह परिकल्पना सार्वभौमिक रूप से 1919 में स्वीकार कर लिया गया।
आइंस्टीन ने यह निष्कर्ष निकाला है कि आवृत्ति (f) की प्रत्येक लहर, ऊर्जा(hf) के प्रत्येक फोटॉनों संग्रह के साथ जुड़ा होता है (जहाँ h प्लैंक स्थिरांक है)। उन्होंने इस बारे में और अधिक नहीं बताया, क्योंकि वे आश्वस्त नहीं थे की कैसे कण, लहरो से सम्बंधित हैं। लेकिन उन्होंने सुझाव दिया की है,कि इस परिकल्पना को कुछ प्रयोगात्मक परिणामों द्वारा समझाया जा सकता हैं जिसे ही बाद में विशेष रूप से प्रकाशविद्युत प्रभाव कहा गया।
क्वान्टाइज़्ड परमाणु कंपन
1907 में, आइंस्टीन ने एक मॉडल प्रस्तावित किया, की प्रत्येक परमाणु, एक जाली संरचना में स्वतंत्र अनुरूप रूप से दोलन करता है। आइंस्टीन मॉडल में, प्रत्येक परमाणु स्वतंत्र रूप से दोलन करता है आइंस्टीन को पता था कि वास्तविक दोलनों की आवृत्ति अलग होती हैं लेकिन फिर भी इस सिद्धांत का प्रस्तावित किया, क्योंकि यह एक स्पष्ट प्रदर्शन था कि कैसे क्वांटम यांत्रिकी, पारम्परिक यांत्रिकी में विशिष्ट गर्मी की समस्या को हल कर सकता हैं। पीटर डीबाई ने इस मॉडल को परिष्कृत किया।
स्थिरोष्म सिद्धांत और चाल-कोण चर
1910 के दशक के दौरान, अलग-अलग प्रणालियों को क्वांटम यांत्रिकी के दायरे में लाने के लिए इसका विस्तार हुआ। के नाभिक की खोज, और यह प्रस्ताव के बाद कि इलेक्ट्रॉन, ग्रहों की तरह कक्षा में घूमते हैं, नील्स बोह्र यह दिखाने में सक्षम हुए की प्लैंक द्वारा शुरू और आइंस्टीन द्वारा विकसित क्वांटम यांत्रिक के द्वारा तत्वों के परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों की असतत गति और तत्वों की को समझाया जा सकता हैं।
1898 के विल्हेम वियेना के तर्क को इसके साथ जोड़ कर आइंस्टीन ने इसके विकास में योगदान दिया। वियेना ने यह दिखाया कि, एक थर्मल संतुलन अवस्था के स्थिरोष्म परिवर्तनहीनता की परिकल्पना से अलग-अलग तापमान पर सभी काले घुमाव को एक सरल स्थानांतरण प्रक्रिया के द्वारा एक दूसरे से व्युत्पन्न किया जा सकता है। 1911 में आइंस्टीन ने यह पाया की वही समोष्ण सिद्धांत यह दिखाता हैं की मात्रा जो किसी भी यांत्रिक गति में प्रमात्रण है को एक स्थिरोष्म अपरिवर्तनीय होना चाहिए। अर्नाल्ड समरफील्ड ने समोष्ण अपरिवर्तनीय को पारंपरिक यांत्रिकी में गतिशील चर के रूप में पहचान की।
लहर-कण द्वैतवाद
गैर-वैज्ञानिक विरासत
निजी पत्र
यात्रा करते समय, आइंस्टीन ने अपनी पत्नी एल्सा तथा दत्तक पुत्री कदमूनी मार्गोट और इल्से के लिए पत्र लिखा करते थे। ये पत्र, द हिब्रू यूनिवर्सिटी में देखे जा सकते हैं। मार्गोट आइंस्टीन ने इन निजी पत्रों को जनता के लिए उपलब्ध कराने की अनुमति दे दी थी, लेकिन साथ ही यह अनुरोध किया कि उसकी मृत्यु के बीस साल बाद तक ऐसा नहीं किया जाये (उनकी मृत्यु 1955 में हो गई)।आइंस्टीन ने ठठेरे (प्लम्बर) के पेशे में अपनी रुचि व्यक्त की थी और उन्हें प्लंबर और स्टीमफिटर्स यूनियन का एक मानद सदस्य बनाया गया था।हिब्रू यूनिवर्सिटी के अल्बर्ट आइंस्टीन अभिलेखागार की बारबरा वोल्फ ने बीबीसी को बताया कि 1912 और 1955 के बीच लिखे निजी पत्राचार के लगभग 3500 पत्र हैं।
रबीन्द्रनाथ ठाकुर से मुलाकात
१४ जुलाई सन् १९३० को बर्लिन में अाईंस्टीन की मुलाकात भारत के महान साहित्यकार, रहस्यविद् व नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर से हुई। पश्चिम की तार्किक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाले एक अपने समय के महान वैज्ञानिक और पूर्व की धार्मिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाले एक महान विचारक एवं भक्त कवि की इस मुलाकात और उनके बीच हुए संवाद को इतिहास की एक अनूठी विरासत माना जाता है।
आइंस्टीन एक भावुक, प्रतिबद्ध जातिवाद विरोधी थे, और प्रिंसटन में नेशनल एसोसिएशन ऑफ द एडवांसमेंट ऑफ कलर्ड पीपल (एनएएसीपी) संस्था के सदस्य भी थे, जहां उन्होंने अफ्रीकी अमेरिकियों के नागरिक अधिकारों के लिए अभियान में हिस्सा भी लिया। वे जातिवाद को अमेरिका की "सबसे खराब बीमारी" मानते थे, अप भागीदारी के समय, वे नागरिक अधिकार कार्यकर्ता डब्ल्यू ई.बी. डु बोइस के साथ जुड़ा गए, और 1951 में उनके एक मुकदमे के दौरान उनकी ओर से गवाही देने के लिए तैयार हो गए।]जब आइंस्टीन ने डू बोइस के चरित्र के लिए गवाह होने की पेशकश की, तो न्यायाधीश ने मुकदमे को ख़ारिज करने का फैसला किया।
1946 में आइंस्टीन ने पेनसिलवेनिया में लिंकन विश्वविद्यालय का दौरा किया, जोकि एक ऐतिहासिक अश्वेत महाविद्यालय था, वहाँ उन्हें एक मानद उपाधि से सम्मानित किया गया (जो की अफ्रीकी अमेरिकियों को कॉलेज की डिग्री देने के लिए संयुक्त राज्य का पहला विश्वविद्यालय था)। आइंस्टीन ने अमेरिका में नस्लवाद के बारे में भाषण दिया, उनका कहना था, "मेरा इसके बारे में चुप रहने का कोई इरादा नहीं हैं।प्रिंसटन के एक निवासी याद करते हैं कि आइंस्टीन ने कभी काले छात्रों के लिए कॉलेज की शिक्षा शुल्क का भुगतान भी किया था।
अ घटनाएँ
द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व, एक अखबार ने अपने एक कॉलम में एक संक्षिप्त विवरण प्रकाशित किया की आइंस्टाइन को अमेरिका में इतनी अच्छी तरह से जाना जाता था कि लोग उन्हें सड़क पर रोक कर उनके दिए सिद्धांत की व्याख्या पूछने लगते थे। आखिरकार उन्होंने इस निरंतर पूछताछ से बचने का एक तरीका निकाला। वे उनसे कहते की "माफ कीजिये! मुझे लोग अक्सर प्रोफेसर आइंस्टीन समझते हैं पर वो मैं नहीं हूँ आइंस्टीन कई उपन्यास, फिल्मों, नाटकों और संगीत का विषय या प्रेरणा रहे हैं।वह "पागल" वैज्ञानिकों" या अन्यमनस्क प्रोफेसरों के चित्रण के लिए एक पसंदीदा चरित्र थे; उनकी अर्थपूर्ण चेहरा और विशिष्ट केशविन्यास शैली का व्यापक रूप से नकल किया जाता रहा है। टाइम मैगजीन के फ्रेडरिक गोल्डन ने एक बार लिखा था कि आइंस्टीन "एक कार्टूनिस्ट का सपना सच होने" जैसे थे।
पुरस्कार और सम्मान
आइंस्टीन ने कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए और 1922 में उन्हें भौतिकी में "सैद्धांतिक भौतिकी के लिए अपनी सेवाओं, और विशेषकर फोटोईक्लेक्ट्रिक प्रभाव के कानून की खोज के लिए" नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1921 में कोई भी नामांकन अल्फ्रेड नोबेल द्वारा निर्धारित मापदंडो में खरा नहीं उतर, तो 1921 का पुरस्कार आगे बढ़ा 1922 में आइंस्टीन को इससे सम्मानित किया गया।
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