भारत में विज्ञान का इतिहास | HISTORY OF SCIENCE IN INDIA
भारत में विज्ञान का इतिहास | history of science in india
ईसा से २००० वर्ष पूर्व के ऐसे प्रमाण है जिसमें आर्यों की अनेक मनोवृत्तियाँ वैज्ञानिक थी. ऐसा समझा जाता था कि ब्रह्मांड का नियंत्रण एक प्राकृतिक नियम द्वारा होता था. प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान ग्रहों की स्थति के अनुसार शुभ लग्न में विशेष रूप से निर्मित मन्दिरों में किया जाता था.
इस तरह से वे खगोल विज्ञानी (ज्योतिषी) एवं गणित और ज्यामिति के ज्ञाता थें. उनकें पंचाग का आधार सूर्य और चन्द्रमा दोनों की गतियां थी. उन्होंने कई नक्षत्रों को जान लिया था और महीने के नाम उनके आधार पर रखे थे.
ऋतुओं के परिवर्तन से अति सूक्ष्म जीवाणुओं और वशांनुवंशिक कारणों से बिमारी होती है का सिद्धांत स्वीकार किया गया है. आयुर्वेद में शल्यचिकित्सा की प्रणाली अत्यंत विकसित थी. बाद में अरबवासियों और यूनानियों ने भी आयुर्वेद को अपनाया. रोमन सम्राज्य के क्षेत्र में भारतीय दवाइयों का भी काफी मांग थी.
भारत में विज्ञान का विकास एवं योगदान (development of science in india, india’s contribution)
18 वीं शताब्दी में नयें नयें तत्वों की खोज का सिलसिला प्रारंभ हुआ इससें पूर्व केवल सात धातुओं का ज्ञान था. ये स्वर्ण, रजत, ताँबा, लोहा, टिन, शीशा और पारद (पारा) इन सभी धातुओं का उल्लेख प्राचीनतम संस्कृत साहित्य में उपलब्ध है, जिनमें ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद भी सम्मिलित है.
वेदों की प्राचीनता ईसा से हजारों वर्ष पूर्व निर्धारित की गईं है. अतः हम भारत में रसायन शास्त्र का प्रारंभ ईसा से हजारों वर्ष पूर्व कह सकते है. पुरातात्विक प्रमाण में लोहा, ताँबा, रजत, सीसा आदि धातुओं की शुद्धता 95% से 99% तक मापी गईं एवं पीतल, ताँबा जैसी मिश्र धातुएँ पाई गईं जो इस बात की परिचायक है, कि भारत में उच्च कोटि के धातुकर्म की प्राचीन परम्परा रही
ईसा से 400 वर्ष पूर्व नालंदा, वाराणसी एवं तक्षशिला विश्वविद्यालय बहुत विख्यात थे. गणित, खगोल विज्ञानऔर चिकित्सा विज्ञान में अभूतपूर्व प्रगति हुई. सुश्रुत ने 26 शताब्दी पहले रोगी की कटी हुई नाक ठीक की थी. इन्हें प्लास्टिक सर्जरी का जनक कहते है. इनकी सुश्रुत संहिता का अरबी में अनुवाद किया गया है. ‘किताब-शाशून-ऐ-हिन्दी और किताबे-सुसुरद.
20 शताब्दी पहले चरक ने चरक संहिता में कहा ”जो चिकित्सक अपने ज्ञान और समझ का दीपक लेकर बीमार के शरीर को नही समझता वह बीमारी को कैसे ठीक कर सकता है उसे सबसे पहले उन सब कारणों का अध्ययन करना चाहिए जो रोगी को प्रभावित करते है, फिर उनका ईलाज करना चाहिए, ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि बीमारी से बचा जाए न कि इलाज किया जाए”
ईसा से ५०० वर्ष पूर्व ही कणाद ऋषि ने परमाणु सिद्धांत प्रस्तुत कर दिया था. ईसा से २०० वर्ष पूर्व पतंजलि ऋषि ने बताया कि मनुष्य के शरीर में नाड़ियां और ऐसे केंद्र है, जिन्हें चक्र कहते है. मूलाधार, सवादिष्ठान, मणिपुर, ह्रदय, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्त्रार आदि कुल आठ चक्र है.
इन्हें सक्रिय बनाएं रखने के लिए आठ चरण या स्थ्तियाँ दी गयी है. यम (सार्वजनीन नैतिक धर्मादेश), नियम (अनुशासन से अपने को शुद्ध करने का तरीका), आसन, प्राणायाम (सांस पर नियंत्रण), प्रत्याहार (मन को बाहरी चीजों से हटाना), धारणा (संकेन्द्रण), भावना (मनन या चिन्तन) और समाधि (अचेतन की स्थति). यह आखिरी चरण सबसे कठिन है. इससे व्यक्ति ऊर्जावान, आत्मनियंत्रित एवं क्षमताओं से परिपूर्ण अनुभव करता है.
विज्ञान के विकास में भारत का योगदान (india’s contribution in the field of science and technology)
आर्यभट्ट प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने कहा कि प्रथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घुमती है जिससे दिन और रात बनते है. चन्द्रमा सूर्य के प्रकाश से चमकता है.
ब्रह्मगुप्त वह गणितज्ञ था, जिसने सबसे पहले शून्य के कार्य करने के नियम बनाए. इन्हें भास्कर जैसे प्रसिद्ध गणितज्ञ ने गणक चक्र चूड़ामणि की उपाधि दी. इन्होने गणित की दो भिन्न शाखाएं बताई बीजगणित और गणित.
संसार को नयें विकिरण (न्यू रेडिएशन) देने वाले वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकटरमन की इस खोज को रमन इफेक्ट कहा गया. 28 फरवरी 1930 को इन्हें भौतिकी में नोबल पुरस्कार मिला था. इस दिवस को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है. रमण इफेक्ट वह अद्भुत प्रभाव है जिससे प्रकाश की प्रकृति और स्वभाव में तब परिवर्तन होता है, जब किसी पारदर्शी माध्यम से निकलता है।
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