शनिवार, 20 मई 2023

भारत सदस्य नहीं, फिर भी जी-7 में बार-बार क्यों बुलाया जाता है?

 भारत सदस्य नहीं, फिर भी जी-7 में बार-बार क्यों बुलाया जाता है?


यह पहली बार नहीं है जब भारत को जी-7 समिट में गेस्ट कंट्री के रूप में बुलाया गया है|जी-7 के प्रमुख देश अमेरिका के साथ कई मुद्दों पर मतभेद होने के बावजूद लगातार यह पांचवीं बार है जब भारत को समिट में गया है. आइए जानते हैं इसके क्या मायने हैं?

जापान के हिरोशिमा में शुक्रवार से जी-7 समिट शुरू हो गया है. भारत जी-7 का स्थायी सदस्य नहीं है लेकिन फिर भी पिछले कई सालों से लगातार भारत को इस समिट  में गेस्ट के तौर पर बुलाया जाता है. 2019 के बाद से यह लगातार पांचवीं बार है जब भारत को जी-7 समिट में बुलाया गया है. गेस्ट कंट्री के तौर भारत को सबसे पहले जी-7 समिट में फ्रांस ने 2003 में बुलाया था. उसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी पांच बार जी-7 बैठक में हिस्सा लिया है|

इस साल भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कोमोरोस, कुक आइलैंड्स, इंडोनेशिया, साउथ कोरिया, वियतनाम को भी गेस्ट कंट्री के तौर पर बुलाया गया है. वहीं,संस्था के रूप यूनाइटेड नेशन, आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक, डब्ल्यूएचओ और डब्ल्यूटीओ को बुलाया गया है. 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को तीन देशों जापान, पापुआ न्यू गिनी और ऑस्ट्रेलिया दौरे पर रवाना हुए. पीएम मोदी जापान के हिरोशिमा शहर में आयोजित हो रही जी-7 समिट में भाग लेंगे|वैसे तो यह पहली बार नहीं है जब भारत को जी-7 देशों की ओर से भारत को बुलाया गया है. लेकिन पीएम मोदी का यह दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि1974 के पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद यह पहली बार है जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री हिरोशिमा का दौरा कर रहा है. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1945 में परमाणु हमले का शिकार हिरोशिमा के दौरे पर इससे पहले 1957 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू गए थे|

इसके अलावा यूक्रेन में रूसी आक्रमण को लेकर भी भारत का रुख अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी के रुख से अलग रहा है. साथ ही आर्थिक प्रतिबंध के बावजूद भारत रूस  से कच्चा तेल आयात कर रहा है. इससे पहले गेहूं के निर्यात पर भी भारत ने रोक लगा दी थी. जिससे अमेरिका खुश नहीं था. ऐसे में एक बार फिर से भारत को गेस्ट कंट्री के तौर पर बुलाने के क्या मायने हैं? 

जी-7 की आर्थिक हिस्सेदारी में गिरावट *


पिछले कुछ सालों से जी-7 का प्रभाव कम हो रहा है. 1980 के दशक में दुनिया की कुल GDP का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा जी-7देशों का होता था. अब यह घटकर करीब 30 फीसदी के करीब रह गया है. भविष्य में भी जी-7 देशों का प्रभाव कम होने की संभावना है| भारत की जीडीपी जी-7 के प्रमुख देश ब्रिटेन के लगभग बराबर है. वहीं, अन्य सदस्य देश जैसे फ्रांस, इटली और कनाडा से अधिक है. रक्षा बजट पर खर्च करने वाला भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है. इसके अलावा भारत एक लोकतांत्रिक देश है. भारत के मत के बाद जी-7 अपनी बातों को प्रमुखता से रख सकता है. यही कारण है कि जी-7 भारत को पिछले कई सालों से हर समिट में आमंत्रित करता रहा है ,2022 के समिट के लिए जर्मनी ने जब भारत को बुलाया था तो भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा भी था कि जी-7 शिखर सम्मेलन में भारत की नियमित भागीदारी यह दिखाती है कि पश्चिमी देशों को दुनिया के सामने बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत के समर्थन की जरूरत है|

चीन को रोकने की कोशिश *


दक्षिण चीन सागर में चीन फिलीपींस सहित कई अन्य देशों के क्षेत्रों में भी अपना दावा ठोंकता रहता है. फिलीपींस इस मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में ले गया. 2016 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने चीन के इस दावे को खारिज कर दिया. चीन ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को नजरअंदाज करते हुए फिलीपींस के आसपास कृत्रिम द्वीपों का निर्माण जारी रखा|

चीन का ऐसा रवैया मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानून को चुनौती दे रहा है. चीन के साथ भारत का भी सीमा विवाद है. आए दिन भारत और चीन के बीच एलएसी के पास झड़प की की खबरें आती रहती हैं. ऐसे में चीन को रोकने में जी-7 देश भारत को अपने साथ लाना चाहते हैं|


इसके अलावा जी-7 समिट में भारत को बुलाना जी-7 के लिए ग्लोबल साउथ के महत्व को भी दर्शाता है. जी-7 और ग्लोबल साउथ के देशों के बीच काफी समय से तनाव रहा है. ग्लोबल साउथ में अपना प्रभाव जमाने के लिए चीन और अमेरिका आमने-सामने है. यूक्रेन में रूसी आक्रमण के बाद दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा और तेज हो गई है. जी-7 देशों की ओर से से बार-बार अनुरोध और चेतावनी के बावजूद ग्लोबल साउथ के अहम देश जी-7 के साथ सहमत नहीं हुए| हाल ही में जापान के एक अधिकारी ने भी एक अंग्रेजी वेबसाइट से बात करते हुए कहा है कि जापान ने भारत को ग्लोबल साउथ के 120 विकासशील और अल्प-विकसित देशों के प्रतिनिधि के तौर पर बुलाया है. अधिकारी ने यह भी कहा कि भारत को समिट में बुलाना ग्लोबल साउथ तक जी-7 की पहुंच को मजबूत करने का हिस्सा है|

भारत को कब-कब जी-7 समिट में बुलाया गया?


भारत को पहली बार 2003 में फ्रांस ने जी-7 सम्मेलन में गेस्ट कंट्री के तौर पर बुलाया था. उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस सम्मेलन में भाग लिए थे. उसके बाद 2005 से 2009 तक भारत को लगातार जी-7 समिट में बुलाया गया. इन पांचों समिट में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शामिल हुए.


उसके बाद एक लंबे अंतराल के बाद भारत को फिर से  2019 में बुलाया गया. 2019 में भी भारत को फ्रांस ने ही बुलाया था. 2019 के बाद से अब तक लगातार भारत को बुलाया जा रहा है. हालांकि, 2020 में अमेरिका की मेजबानी में होने वाली समिट को कोविड-19 के कारण रद्द कर दिया गया था. 2021 में ब्रिटेन ने बुलाया था. इसमें पीएम मोदी ने वर्चुअली हिस्सा लिया था. जबकि 2022 में जर्मनी ने बुलाया था |

क्या है जी-7? ( What is the G-7 Summit?) *


जी-7 दुनिया के सबसे अमीर देशों का एक समूह है. यह एक प्रकार से विश्व के प्रमुख औद्योगिक राष्ट्रों का एक अनौपचारिक मंच है. इस समूह में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल है. इसके अलावा यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि हमेशा G7 की वार्षिक बैठक में शामिल होते हैं. मेजबान देश इस सम्मेलन में किसी अन्य देश को गेस्ट के तौर पर भाग लेने के लिए आमंत्रित करता है,दुनिया की कुल आबादी की लगभग 10 प्रतिशत आबादी जी-7 देशों में बसती हैं. वैश्विक जीडीपी में जी-7 देशों की हिस्सेदारी लगभग 31 प्रतिशत है. वैश्विक व्यापार में भी जी-7 देश प्रमुख प्लेयर के रूप में गिने जाते हैं. अमेरिका और जर्मनी दुनिया के प्रमुख निर्यातक देश हैं |

जी-7 का पहला शिखर सम्मेलन 1975 में हुआ था. अरब तेल पर प्रतिबंध के बाद मंदी से निपटने लिए आयोजित हुए इस बैठक में छह देशों ने हिस्सा लिया था. इसकी  मेजबानी फ्रांस ने की थी. एक साल बाद यानी 1976 में कनाडा इसका सातवां सदस्य बना. 1988 में रूस के आने से यह समूह जी-8 बन गया. लेकिन 2014 में रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. जिसके बाद उसे निष्कासित कर दिया गया | 

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