बुधवार, 12 जनवरी 2022

UP Assembly Elections: UP में फिर चमकेगी जातिवाद की राजनीति! समझें भाजपा और सपा का सियासी प्लान ???

 

UP Assembly Elections: UP में फिर चमकेगी जातिवाद की राजनीति! समझें भाजपा और सपा का सियासी प्लान - 




UP Assembly Elections: अखिलेश यादव ने पिछला चुनाव विकास (काम बोलता है) के नारे पर लड़ा था, लेकिन वे साफतौर पर यह चुनाव जाति के नाम पर लड़ रहे हैं और यूपी की पारंपरिक व्यवस्था जाति राजनीति की ओर लौट रहे हैं. यह इस बार चुनाव रणनीति में अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह के प्रभाव को भी दिखाता है| राज्य में 6 फीसदी मौर्य आबादी पर स्वामी प्रसाद मौर्य के प्रभाव को लेकर बहस हो सकती है. ऐसे में अगर भाजपा के पास नुकसान की भरपाई के लिए डिप्टी सीएम जैसे वरिष्ठ मौर्य नेता हैं, तो चीजें सपा के लिए भी बेहतर हैं|


लखनऊ- 
 उत्तर प्रदेश (UP) में दल बदल के मौसम के बीच भारतीय जनता पार्टी (BJP) के शीर्ष नेता दिल्ली में टिकटों पर मंथन कर रहे हैं. इसी बीच कहा जा रहा है कि लखनऊ में पार्टी के चार विधायकों ने पार्टी को अलविदा कह दिया है औऱ अब उनका रुख समाजवादी पार्टी (SP) की ओर है. इधर, ‘नेता’ और भाजपा के पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) ने दावा किया है कि उनकी तरफ से यह कदम उठाया जाना बाकी है|



यूपी में भाजपा के 312 विधायक हैं और माना जा रहा है कि इनमें से एक-चौथाई को टिकट मिलने की संभावना नहीं है| भाजपा को लगता है कि कुछ विधायकों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर सत्ता विरोधी लहर है. इन हालात में पार्टी में इस तरह के और भी घटनाक्रम होने के आसार हैं, क्योंकि नेता अपने लिए बेहतर मौके तलाश रहे हैं. न्यूज18 के साथ बातचीत में भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी इस बात का हवाला देते हैं कि तीन विधायकों सुभाष पासी (सपा), वंदना सिंह (बसपा), अदिति सिंह (कांग्रेस) और चार सपा एमएलसी नरेंद्र भाटी, पप्पू सिंह, सीपी चंद और राम निरंजन समेत कैसे अन्य पार्टियों के 10 वरिष्ठ नेता भाजपा में शामिल हुए|


हालांकि, इन बदलावों को सीएम योगी आदित्यनाथ की तरफ से किए गए ’80 बनाम 20′ के दावों से भी जोड़कर देखा जा रहा है. जिसका मुकाबला अखिलेश यादव ने ‘सामाजिक न्याय पर आधारित जाति गठबंधन’ से किया है| यादव यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि सपा के पारंपरिक मुस्लिम-यादव (MY) वोट बैंक ही नहीं, बल्कि पिछड़ी जातियों का झुकाव भी आगामी चुनाव में सपा की ओर हो रहा है, जैसा कि पहले बसपा और अब भाजपा के नेताओं की श्रृंखला में नजर आता है, जो सपा की ओर बढ़ रहे हैं|



अखिलेश यादव ने पिछला चुनाव विकास (काम बोलता है) के नारे पर लड़ा था, लेकिन वे साफतौर पर यह चुनाव जाति के नाम पर लड़ रहे हैं और यूपी की पारंपरिक व्यवस्था जाति राजनीति की ओर लौट रहे हैं| यह इस बार चुनाव रणनीति में अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह के प्रभाव को भी दिखाता है. राज्य में 6 फीसदी मौर्य आबादी पर स्वामी प्रसाद मौर्य के प्रभाव को लेकर बहस हो सकती है| ऐसे में अगर भाजपा के पास नुकसान की भरपाई के लिए डिप्टी सीएम जैसे वरिष्ठ मौर्य नेता हैं, तो चीजें सपा के लिए भी बेहतर हैं|



दूसरी ओर, भाजपा अपना अभियान इस मुद्दे पर तैयार कर रही है कि राज्य जाति की बहस से आगे बढ़ चुका है| साथ ही ‘मुस्लिम-यादव’ ध्रुविकरण के खिलाफ बहुसंख्यकों के काउंटर पोलेराइजेशन की कोशिश कर रही है. यह सीएम के यह चुनाव ’80 बनाम 20′ होने के बयान को समझाता है और ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’ के लोकप्रिय नारे का समर्थन करता है. सीएम ने राम मंदिर, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और मथुरा के विकास के वादे को बड़ा चुनावी वादा बनाने के लिए नया शब्द ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ भी सामने रखा है|

सीएम योगी के रूप में बीजेपी का पास एक ऐसा नेता है, जो मुद्दे पर खुलकर बोल सकता है और कल्पना करने के लिए कुछ नहीं छोड़ता. क्या यूपी में मतदाता जाति वाले नियम के आधार पर वोट करेंगे या सीएम योगी के आह्वान पर काम करेंगे| चुनाव के मौसम में हो रहे बदलावों की तुलना में आगामी चुनाव में यह कही ज्यादा जरूरी प्रश्न है|



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